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चीतों ने अपनाया गांधीसागर का जंगल, नीलगाय बनी पसंदीदा शिकार“प्रोजेक्ट चीता” को मिली एक और सफलता, नए वातावरण में ढल रहे हैं चीते

Mahendra Upadhyay
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मंदसौर।महेन्द्र उपाध्याय। गांधीसागर अभयारण्य में हाल ही में स्थानांतरित किए गए चीतों ने यहां के जंगल को न केवल अपनाया है, बल्कि अपने शिकार के व्यवहार में भी सकारात्मक बदलाव दिखाए हैं। कुनो नेशनल पार्क से लाए गए ये चीते अब गांधीसागर के खुले मैदानों और घास के क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं। वन अधिकारियों के अनुसार, ये चीते औसतन हर दूसरे दिन शिकार कर रहे हैं, जिनमें नीलगाय प्रमुख रूप से शामिल हैं। इससे स्पष्ट है कि वे न केवल नए वातावरण में सफलतापूर्वक ढल चुके हैं, बल्कि भोजन प्राप्ति में भी पूरी तरह सक्षम हो चुके हैं।

*शिकार में निपुणता और नियमितता*

वन विभाग द्वारा लगाए गए ट्रैकिंग कॉलर और कैमरा ट्रैप से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, चीते सामान्यतः तड़के सुबह या देर शाम शिकार करते हैं। खुले मैदानों में चर ने वाली नीलगायें उनके लिए सबसे आसान लक्ष्य बन रही हैं। इसके अलावा, कुछ मौकों पर चीतल और चिंकारा को भी शिकार बनाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नियमित शिकार केवल पोषण ही नहीं, बल्कि चीतों की मानसिक और शारीरिक स्थिति के लिए भी बेहद अनुकूल है।

*सहजता से अनुकूलन का प्रमाण*

वन मंडलाधिकारी मंदसौर, संजय रायखेरे ने जानकारी दी कि गांधीसागर क्षेत्र में नीलगायों की संख्या पर्याप्त है और चीते उन्हें अपनी प्राथमिक शिकार सूची में शामिल कर चुके हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि चीते अब जंगल में बिना बाहरी सहायता के जीवित रहने में सक्षम हैं। शुरुआत में चिंता थी कि क्या ये चीते नए वातावरण को स्वीकार करेंगे या नहीं, लेकिन अब उनका व्यवहार दर्शाता है कि वे पूरी तरह से अनुकूल हो चुके हैं।

*प्रोजेक्ट चीता को नई उड़ान*

भारत में वर्षों पहले विलुप्त हो चुके चीतों को दोबारा बसाने के उद्देश्य से शुरू किए गए “प्रोजेक्ट चीता” को गांधीसागर में नई सफलता मिलती दिखाई दे रही है। कुनो नेशनल पार्क के बाद गांधीसागर दूसरा ऐसा अभयारण्य बन गया है, जहां चीते स्वतंत्र रूप से शिकार कर रहे हैं और बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के जंगल में विचरण कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार का अनुकूलन दीर्घकालिक संरक्षण प्रयासों की दिशा में एक अहम मील का पत्थर है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत में चीतों की स्थायी आबादी स्थापित की जा सकेगी।गांधीसागर में चीतों की यह सफलता न केवल “प्रोजेक्ट चीता” के लिए उत्साहजनक संकेत है, बल्कि यह भारत में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उम्मीद की जा रही है कि इस प्रगति से प्रेरित होकर देश के अन्य क्षेत्रों में भी चीतों के लिए उपयुक्त आवास विकसित किए जाएंगे।

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